बर्फ !!

अंधेरों में रहने की आदत सी हो चली है
ये रात ना गुज़रे कभी, ना आफ़ताब निकले
हो जाएगा नुमायाँ ये मेरा जिस्म बरहना
है इल्तजा तुझसे ख़ुदा ये बर्फ ना पिघले !!

किरदार!!

दीवारों पे तेरा नाम लिख लिख के मिटाया मैंने,

क्या कहूँ कितनी मुश्किल से तुझको भुलाया मैंने !

 

बरसों का ताल्लुक तोड़ कर तुम यूँही चल दिए ,

पलट कर भी नहीं देखा कितना बुलाया मैंने !

 

तुमको पास मेरे लौट कर तो आना है इक दिन ,

हर शाम इसी तरह इस दिल को समझाया मैंने !

 

छुपा के दर्द सबसे रखा सामने हँसता हुआ चेहरा ,

बड़ी नफ़ासत से मेरे किरदार को निभाया मैंने !!

इश्क़ !!

गिरते रहे रहगुज़र में खा खा के ठोकरें….

अब ज़रा दो कदम तो संभल के देखें ….

कर लिया तुमसे बेवफ़ा इश्क़ बहुत हमने ….

अब इश्क़ ज़रा ख़ुद से तो कर के देखें …..